Tuesday, July 1, 2025

कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा

 

कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा



एक मुसाफ़िर तपते रेगिस्तान में भटक गया था। उसके पास जो थोड़ा-बहुत खाने-पीने का सामान था, वह तेज़ी से ख़त्म हो गया। दो दिन से उसकी प्यास बुझ नहीं रही थी। उसे भीतर से लग रहा था कि अगर अगले कुछ घंटों में पानी नहीं मिला, तो उसकी साँसें थम जाएँगी। पर कहीं न कहीं उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ न कुछ चमत्कार तो ज़रूर होगा और उसे पानी मिल जाएगा। फिर भी, उसके मन में उम्मीद की एक किरण बची हुई थी।
तभी, दूर उसे एक छोटी सी झोंपड़ी दिखाई दी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। पहले भी वह मरीचिका और धोखे के कारण ठगा जा चुका था। लेकिन अब उसके पास विश्वास करने के सिवा कोई और रास्ता भी तो नहीं था। आख़िरकार, यह उसकी आख़िरी उम्मीद थी। अपनी बची हुई ताक़त समेटकर वह झोंपड़ी की ओर बढ़ने लगा। जैसे-जैसे वह नज़दीक पहुँचता गया, उसकी उम्मीद बढ़ती गई, और इस बार किस्मत भी उस पर मेहरबान थी। सचमुच, वहाँ एक झोंपड़ी खड़ी थी।
लेकिन यह क्या? झोंपड़ी तो बिल्कुल सुनसान पड़ी थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों से वहाँ कोई इंसान न आया हो। फिर भी, पानी की आस में वह व्यक्ति झोंपड़ी के अंदर दाखिल हुआ। अंदर का नज़ारा देखकर उसे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हुआ। वहाँ एक हैंडपंप लगा हुआ था। उस व्यक्ति में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया। पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसता हुआ वह तेज़ी से हैंडपंप चलाने लगा। लेकिन हैंडपंप तो कब का सूख चुका था। वह व्यक्ति निराश हो गया। उसे लगा कि अब उसे मौत से कोई नहीं बचा सकता। वह बेदम होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
तभी उसकी नज़र झोंपड़ी की छत से लटकी एक पानी से भरी बोतल पर पड़ी। वह किसी तरह रेंगता हुआ उसकी तरफ़ बढ़ा और उसे खोलकर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल पर चिपका एक कागज़ दिखाई दिया। उस पर लिखा था - "इस पानी का इस्तेमाल हैंडपंप चलाने के लिए करो और बोतल को वापस भरकर रखना मत भूलना।"
यह एक अजीब दुविधा थी। उस व्यक्ति को समझ नहीं आ रहा था कि वह पानी पिए या उसे हैंडपंप में डालकर चालू करे। उसके मन में कई सवाल उठने लगे - अगर पानी डालने पर भी पंप नहीं चला तो? अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई तो? क्या पता ज़मीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो? लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े? क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो? वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।
फिर, कुछ देर सोचने के बाद उसने बोतल खोली और काँपते हाथों से पानी पंप में डालने लगा। पानी डालकर उसने भगवान से प्रार्थना की और पंप चलाने लगा। एक, दो, तीन... और हैंडपंप से ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगा। वह पानी किसी अमृत से कम नहीं था। उस व्यक्ति ने पेट भरकर पानी पिया, उसकी जान में जान आ गई। उसका दिमाग़ फिर से काम करने लगा। उसने बोतल में दोबारा पानी भरा और उसे छत से लटका दिया।
जब वह यह सब कर रहा था, तभी उसे अपने सामने एक और काँच की बोतल दिखाई दी। खोलने पर उसमें एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था, जिसमें रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया गया था। उस व्यक्ति ने रास्ता याद कर लिया और नक्शे वाली बोतल को वापस वहीं रख दिया। इसके बाद उसने अपनी बोतलों में (जो उसके पास पहले से थीं) पानी भरा और वहाँ से चलने लगा।
कुछ दूर जाने के बाद उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा, फिर कुछ सोचकर वह वापस उस झोंपड़ी में गया और पानी से भरी बोतल पर चिपके कागज़ को उतारकर उस पर कुछ लिखने लगा। उसने लिखा - "मेरा विश्वास कीजिए, यह हैंडपंप काम करता है।"
यह कहानी पूरे जीवन के बारे में है। यह हमें सिखाती है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी हमें अपनी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। और इस कहानी से यह भी सीख मिलती है कि कुछ बहुत बड़ा पाने से पहले हमें अपनी ओर से भी कुछ देना होता है। जैसे उस व्यक्ति ने नल चलाने के लिए मौजूद सारा पानी उसमें डाल दिया।
देखा जाए तो इस कहानी में पानी जीवन में मौजूद महत्वपूर्ण चीज़ों को दर्शाता है, कुछ ऐसी चीज़ें जिनकी हमारी नज़रों में ख़ास कीमत है। किसी के लिए मेरा यह संदेश ज्ञान हो सकता है, तो किसी के लिए प्रेम, तो किसी और के लिए पैसा। यह जो कुछ भी है, उसे पाने के लिए पहले हमें अपनी तरफ़ से उसे कर्म रूपी हैंडपंप में डालना होता है, और फिर बदले में आप अपने योगदान से कहीं ज़्यादा मात्रा में उसे वापस पाते हैं।

🎈🎈प्रेरक कहानी🎈🎈 "कछुआ और खरगोश" कहानी एक नये अन्दाज़ में – वो कहानी जो आपने नहीं सुनी.....

 🎈🎈प्रेरक कहानी🎈🎈

"कछुआ और खरगोश" कहानी एक नये अन्दाज़ में – वो कहानी जो आपने नहीं सुनी.....

दोस्तों आपने कछुए और खरगोश की कहानी ज़रूर सुनी होगी, just to remind you; short में यहाँ बता देता हूँ:

एक बार खरगोश को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया और वो जो मिलता उसे रेस लगाने के लिए challenge करता रहता।
कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।रेस हुई। 

खरगोश तेजी से भागा और काफी आगे जाने पर पीछे मुड़ कर देखा, कछुआ कहीं आता नज़र नहीं आया, उसने मन ही मन सोचा कछुए को तो यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा, चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं, और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। लेटे-लेटे कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला।

उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा। बहुत देर बाद जब खरगोश की आँख खुली तो कछुआ फिनिशिंग लाइन तक पहुँचने वाला था। खरगोश तेजी से भागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया।
Moral of the story: Slow and steady wins the race.(धीमा और लगातार चलने वाला रेस जीतता है।)

ये कहानी तो हम सब जानते हैं, अब आगे की कहानी देखते हैं:
रेस हारने के बाद खरगोश निराश हो जाता है, वो अपनी हार पर चिंतन करता है और उसे समझ आता है कि वो over-confident होने के कारण ये रेस हार गया…उसे अपनी मंजिल तक पहुँच कर ही रुकना चाहिए था।
अगले दिन वो फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है। कछुआ पहली रेस जीत कर आत्मविश्वाश से भरा होता है और तुरंत मान जाता है।
रेस होती है, इस बार खरगोश बिना रुके अंत तक दौड़ता जाता है, और कछुए को एक बहुत बड़े अंतर से हराता है।

Moral of the story: Fast and consistent will always beat the slow and steady. / तेज और लगातार चलने वाला धीमे और लगातार चलने वाले से हमेशा जीत जाता है।
यानि slow and steady होना अच्छा है लेकिन fast and consistent होना और भी अच्छा है।
For example, अगर किसी ऑफिस में इन दो टाइप्स के लोग हैं तो वे ज्यादा तेजी से आगे बढ़ते हैं जो fast भी हैं और अपने फील्ड में consistent भी हैं।
कहानी अभी बाकी है..................✍

इस बार कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे ये बात समझ आती है कि जिस तरह से अभी रेस हो रही है वो कभी-भी इसे जीत नहीं सकता।
वो एक बार फिर खरगोश को एक नयी रेस के लिए चैलेंज करता है, पर इस बार वो रेस का रूट अपने मुताबिक रखने को कहता है। खरगोश तैयार हो जाता है।
रेस शुरू होती है। खरगोश तेजी से तय स्थान की और भागता है, पर उस रास्ते में एक तेज धार नदी बह रही होती है, बेचारे खरगोश को वहीँ रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ वहां पहुँचता है, आराम से नदी पार करता है और लक्ष्य तक पहुँच कर रेस जीत जाता है।
Moral of the story: 
Know your core competencies and work accordingly to succeed. पहले अपनी strengths को जानो और उसके मुताबिक काम करो जीत ज़रुर मिलेगी.
For Ex: अगर आप एक अच्छे वक्ता हैं तो आपको आगे बढ़कर ऐसे अवसरों को लेना चाहिए जहाँ public speaking का मौका मिले। ऐसा करके आप अपनी organization में तेजी से ग्रो कर सकते हैं।
कहानी अभी भी बाकी है..................✍

इतनी रेस करने के बाद अब कछुआ और खरगोश अच्छे दोस्त बन गए थे और एक दुसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक दुसरे का साथ दें तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं।
इसलिए दोनों ने आखिरी रेस एक बार फिर से मिलकर दौड़ने का फैसला किया, पर इस बार as a competitor नहीं बल्कि as a team काम करने का निश्चय लिया।
दोनों स्टार्टिंग लाइन पे खड़े हो गए….get set go…. और तुरंत ही खरगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेजी से दौड़ने लगा। दोनों जल्द ही नदी के किनारे पहुँच गए। अब कछुए की बारी थी, कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर गए। अब एक बार फिर खरगोश कछुए को उठा फिनिशिंग लाइन की ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ मिलकर रिकॉर्ड टाइम में रेस पूरी कर ली। दोनों बहुत ही खुश और संतुष्ट थे, आज से पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी।
Moral of the story: Team Work is always better than individual performance. / टीम वर्क हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है।
Individually चाहे आप जितने बड़े performer हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते।
अगर लगातार जीतना है तो आपको टीम में काम करना सीखना होगा, आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा। और जब जैसी situation हो, उसके हिसाब से टीम की strengths को use करना होगा।

यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है। खरगोश और कछुआ दोनों ही अपनी हार के बाद निराश हो कर बैठ नहीं गए, बल्कि उन्होंने स्थिति को समझने की कोशिश की और अपने आप को नयी चुनौती के लिए तैयार किया। जहाँ खरगोश ने अपनी हार के बाद और अधिक मेहनत की वहीँ कछुए ने अपनी हार को जीत में बदलने के लिए अपनी strategy में बदलाव किया।
जब कभी आप फेल हों तो या तो अधिक मेहनत करें या अपनी रणनीति में बदलाव लाएं या दोनों ही करें, पर कभी भी हार को आखिरी मान कर निराश न हों…बड़ी से बड़ी हार के बाद भी जीत हासिल की जा सकती ह...👍👍...

amar prem

 एक बार की बात है, 

एक छोटे से गांव में 
मोहन और रुक्मिणी
दो पड़ोसि रहते थे , वे बचपन से ही एक-दूसरे  के अच्छे दोस्त रहे थे। जैसे-जैसे वक्त बीता , उनका रिश्ता और भी जड़े पकड़ता गया, और वे  अब एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे थे ,जब वे बारहवीं कक्षा में आए, तब मोहन  को एहसास होने लगा कि रुक्मिणी के प्रति उसके दिल में  दोस्ती से आगे बढ़ कर कुछ है , वह रुक्मिणी से जब बात करता था , उसकी  आंखों में खो जाता था। लेकिन वह दोस्ती कहीं खत्म  न हो जाए इस डर से अपने प्यार के इजहार से डरता था ।रुक्मिणी भी  हमेशा मोहन  के साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूंढती थी, और जब भी मोहन के पास होती थी बहुत खुश रहती थीं। वह भी अपने प्यार के इजहार से डरती थी कि कहीं मोहन से उसकी दोस्ती खत्म न हों जाए ।

एक दिन  मोहन ने आखिरकार सही समय देख कर रुक्मिणी को अपने दिल की बात बता दी । रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी।उसकी आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े।रुक्मिणी ने अपने अंदाज से अपनी आंखों से अपने प्यार का इजहार कर अपनी मन की बात जाहिर कर दी, दोनो को ऐसा लग रहा था जैसे की मन से कोई बोझ उतर गया हो ।

दोनों ने अपने परिवारों में ये बात बता दी,दोनों के परिवारों को इस रिश्ते से कोई  आपत्ति नहीं थी,जल्द ही दोनों ने विवाह कर लिया, जैसा कि सभी के साथ होता है ,मोहन va रुक्मिणी ke साथ भी होना शुरू हो गया , अब जीवन पहले जैसा भी नहीं रहा था , जिम्मेदारियां लापरवाहियों va बेपरवायियों पर अब हावी हो गई थी, जीवन की नई चुनौतियां मुंह फाड़े सामने खड़ी थी , वैसे भी कहा जाता है शादी प्रेम की समाधी ,दोनो में  अब किसी न किसी बात पर तकरार हो जाती थी ,फिर दोनों एक दूसरे से कई कई दिनों तक बात नहीं करते थे , एक दिन तो गलतफहमी इतनी बड़ी की दोनों में खूब बहस हो गई , रुक्मिणी अपना कुछ जरूरी सामान लेकर अपनी मां के पास चली गई, मोहन भी काम से छुट्टी लेकर अपने मां बाप के पास चला गया ,जैसा कि कहा जाता है, सच्चा प्यार किसी भी मुश्किल को हरा सकता है, सबसे बेहतरीन रिश्ते पवित्र वा सच्चे प्यार से बनते है, दोनों अपनी मानसिक स्थिति अपने पेरेंट्स से छिपा नहीं सके ,दोनों के पेरेंट्स ने दोनों को समझाया कि, ये एक साधारण सी बात है किसी रिश्ते में बहस या तकरार होना ,एक दूसरे से शादी शुदा जीवन में तकरार होना नॉर्मल है अगर तकरार नहीं होती तो वह एबनॉर्मल है, फिर किसी शायर ने कहा भी है कुछ दूरियां दरमियान रहने दो , इससे भी नजदीकिया निखरती है, दोनों को अब एक दूसरे की कमी खलने लगी थी ,लेकिन मुश्किल ये थी शुरुआत कौन करे , आखिर मोहन के पेरेंट्स ने मोहन को समझाया कि रुक्मिणी हिचकिचा रही होगी ,तुम्हे फोन करने से ,तुम ही उसे फोन कर लो, मोहन ने रुक्मिणी को सुबह फोन करके बोला में तुम्हे कल लेने आ रहा हूं,रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी ,रुक्मिणी पूरे अधिकार व हक से बोली कल नहीं तुम मुझे आज ही लेने आ रहे हो , मोहन उस पल मिली खुशी को छिपा नहीं पा रहा था ,  मोहन दोपहर को ही रुक्मिणी के घर पहुंच गया , यहां दो नियम अपना काम बेखूबी से  कर रहे थे, तकरार खत्म अगर करनी है तो बिना नई बहस के शुरू होने से पहले कर  दो , की तेरी ये गलती, तेरी वो गलती ,ये किए बगैर कर दो , अन्यथा तकरार के बीज फिर कभी भी नई बहस बन कर फूट पड़ेंगे, दूसरा हर, बहस हर झगड़ा, हर तकरार अगर तुरंत न खत्म की जाए तो उसे तेजी से बढ़ने वाली बेल की तरह से फिर तुरंत कंट्रोल नहीं किया जा सकता है ।





एक बार की बात है,  

एक छोटे से गांव में  

मोहन और रुक्मिणी 

 दो पड़ोसि रहते थे ,

 वे बचपन से ही एक-

दूसरे  के अच्छे दोस्त रहे

 थे। जैसे-जैसे वक्त बीता , 

उनका रिश्ता और भी जड़े 

पकड़ता गया, और वे  अब 

एक-दूसरे के साथ ज्यादा 

समय बिताने लगे थे ,जब 

वे बारहवीं कक्षा में आए, 

तब मोहन को एहसास होने 

लगा कि रुक्मिणी के प्रति

 उसके दिल में  दोस्ती से 

आगे बढ़ कर कुछ है , वह 

रुक्मिणी से जब बात करता 

था , उसकी  आंखों में खो

 जाता था। लेकिन वह

 दोस्ती कहीं खत्म  न हो

 जाए इस डर से अपने 

प्यार के इजहार से डरता

 था ।रुक्मिणी भी  हमेशा

 मोहन  के साथ वक़्त 

बिताने के बहाने ढूंढती थी,

 और जब भी मोहन के 

पास होती थी बहुत खुश 

रहती थीं। वह भी अपने

 प्यार के इजहारसे डरती

 थी कि कहीं मोहन से उसकी

 दोस्ती खत्म न हों जाए ।

 एक दिन  मोहन ने आखिरकार

 सही समय देख कर रुक्मिणी

 को अपने दिल की बात बता दी ।

 रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का 

इंतजार कर रही थी।उसकी आंखों

 से खुशी के आंसू निकल पड़े।

रुक्मिणी ने अपने अंदाज से 

अपनी आंखों से अपने प्यार का

 इजहार कर अपनी मन की बात 

जाहिर कर दी, दोनो को ऐसा लग 

रहा था जैसे की मन से कोई 

बोझ उतर गया हो ।

 दोनों ने अपने परिवारों में

 ये बात बता दी,दोनों के 

परिवारों को इस रिश्ते से

 कोई  आपत्ति नहीं थी,जल्द 

ही दोनों ने विवाह कर लिया, 

जैसा कि सभी के साथ होता

 है ,मोहन va रुक्मिणी

 ke साथ भी होना शुरू

 हो गया , अब जीवन 

पहले जैसा भी नहीं 

रहा था , जिम्मेदारियां 

लापरवाहियों va बेपरवायियों 

पर अब हावी हो गई थी,

 जीवन की नई चुनौतियां 

मुंह फाड़े सामने खड़ी 

थी , वैसे भी कहा जाता है 

शादी प्रेम की समाधी ,

दोनो में  अब किसी न 

किसी बात पर तकरार 

हो जाती थी ,फिर दोनों 

एक दूसरे से कई कई 

दिनों तक बात नहीं

 करते थे , एक दिन तो

 गलतफहमी इतनी बड़ी 

की दोनोंमें खूब बहस

 हो गई , रुक्मिणी

 अपना कुछ जरूरी

 सामान लेकरअपनी मां

 के पास चली गई, 

मोहन भी काम से छुट्टी 

लेकर अपने मां बाप के 

पास चला गया ,जैसा 

कि कहा जाता है, सच्चा

 प्यार किसी भी मुश्किल को

 हरा सकता है,सबसे बेहतरीन

 रिश्ते पवित्र वा सच्चे प्यार से 

बनते है, दोनों अपनी मानसिक 

स्थिति अपने पेरेंट्स से छिपा 

नहीं सके ,दोनों के पेरेंट्स ने 

दोनों को समझाया कि, ये एक 

साधारण सी बात है किसी रिश्ते

 में बहस या तकरार होना ,एक 

दूसरे से शादी शुदा जीवन में 

तकरार होना नॉर्मल है अगर 

तकरार नहीं होती तो वह 

एबनॉर्मल है, फिर किसी 

शायर ने कहा भी है कुछ

 दूरियां दरमियान रहने 

दो , इससे भी नजदीकिया

 निखरती है, दोनों 

को अब एक दूसरे की 

कमी खलनेलगी थी 

,लेकिन मुश्किल ये थी 

शुरुआत कौन करे ,आखिर

 मोहनके पेरेंट्स ने

 मोहन को समझाया

 कि रुक्मिणी हिचकिचा

 रही होगी तुम्हे फोन 

करने से ,तुम ही उसे

 फोन कर लो, मोहन ने 

रुक्मिणीको सुबह फोन 

करके बोला में 

तुम्हे कल लेने आ रहा

 हूं,रुक्मिणी तो जैसे इसी 

पल का इंतजार कर

 रही थी ,रुक्मिणी पूरे

 अधिकार व हक से बोली

 कल नहीं तुम मुझे आज 

ही लेने आ रहे हो , मोहन

 उस पल मिली खुशी को 

छिपा नहीं पा रहा था 

मोहन दोपहर को ही 

रुक्मिणी के घर पहुंच गया ,

यहां दो नियम अपना काम 

बेखूबी से  कर रहे थे, 

तकरार खत्म अगर करनी

 है तो बिना नई बहस के 

शुरू होने से पहले कर 

 दो , की तेरी ये गलती, 

तेरी वो गलती ,ये किए 

बगैर कर  दो , अन्यथा

 तकरार के बीज 

फिर कभी भी नई बहस

 बन कर फूट पड़ेंगे, 

दूसरा हर, बहस

 हर झगड़ा, हर तकरार 

अगर तुरंत न खत्म की 

जाए तो उसे तेजी से बढ़ने

 वाली बेल की तरह से 

फिर तुरंत कंट्रोल नहीं 

किया जा सकता है ।




billi nhi paalni

 एक महात्मा जी गांव में  झोपड़ी  में रहते थे ।

उनकी झोपड़ी में चूहे बहुत थे ।जो उन्हें बहुत तंग करते थे ,उन्होंने अपने सेवकों को यह बात बताई , ओर पूछा  इस समस्या  से छुटकारा पाने के लिए क्या किया जाए ,तो उन्होंने   कहा बाबा जी परेशान ना हो बिल्ली पाल लो, बिल्ली चूहों को खा लेती  है, महात्मा जी ने कहा ठीक है ,उन्होंने बिल्ली पाल ली , अब जब बिल्ली आ गई तो बिल्ली को दूध चाहिए
अब गांव वाले रोज दूध दे जाते बिल्ली के लिए 
 अब गांव वाले कब तक दूध देते ,तो गांव वालों ने कहा महाराज 15 ,20 दिन हो गए ,अब हमने खूब दूध दे दिया अब एक काम करो रोज आपको दूध तो चाहिए ,इसलिए एक गाय पाल लो,
गाएं  हम लोग दे देंगे
अब दूध तो सच में चाहिए सो एक गाय रख ली 
अब गाय के लिए गांव वाले चारा कब तक दे ,15 20 दिन गांव वाले ने दिया,फिर बोले  महाराज कब तक हम मदद करेंगे एक काम करो ,दो एकड़ खेती की जमीन  ले लो , उसमें चारा बो और  खिलाओ  गाएं को ,महात्मा ने कहा यह भी ठीक है जरूरी है क्योंकि भाई बिल्ली रखना है तो, दूध चाहिए और दूध चाहिए तो गाय चाहिए ,और बिल्ली इसलिए चाहिए कि चूहा खाएगी अब क्या किया जाए अब चारा के लिए खेती ले ली ,अब चारा काटे कि भजन करें,या  माला जपे, कि प्रभु को पाए, कि चारा काटे
उन्होंने अपनी समस्या गांव वालो को बताई

 गांव वाले बोले महाराज जी  गांव में  एक विधवा औरत है ,उसका कोई नहीं है उसको हम आपके आश्रम पर रख देते हैं वो चारा काटती रहेगी गाय को खिलाती रहेगी आपके लिए दूध मिल जाएगा आप बिल्ली को पिलाते रहना झंझट खत्म ,
 महात्मा बोले ये ठीक है काम बन गया
वक्त बीता 
अब गांव में महात्मा जी की बाते होने लगी, धीरे धीरे, कुछ सही ज्यादा गलत, , तो गांव वाले बोले महाराज ऐसे काम नहीं चलेगा अब तो शादी करनी पड़ेगी ,आपको तभी चलेगा ,ऐसे काम नहीं चलेगा शादी करनी पड़ेगी आखिरकार महात्मा जो को  शादी करनी पड़ी , इसलिए करनी पड़ी ,  क्योंकि गाएं के लिए चारा बोना va काटना था ,क्योंकि गाय रखनी थी और गाय इसलिए रखनी थी क्योंकि दूध चाहिए था दूध इसलिए चाहिए था क्योंकि बिल्ली पाल ली थी और बिल्ली इसलिए बुलाई थी क्योंकि चूहा खत्म करने  के लिए ,अंत  में  शादी हो गई 
वक्त बीता 
जब महात्मा जी का अंतिम समय आया  तो शिष्यों ने पूछा कोई गुरु ज्ञान दो महात्मा जी बोले सब कुछ करना बिल्ली मत पालना सब कुछ करना पर बिल्ली मत पालना ये पूरा खेल बिल्ली से स्टार्ट हुआ है यही हम तुमको बताना चाहते हैं कि अगर झंझट पाल लोगे तो झंझट बढ़ते ही जाएंगे ,बढ़ते ही चले जाएंगे सर्वोत्तम उपाय है जो प्राप्त है वही पर्याप्त  है, वह किसी से कम नहीं है जो मिला नहीं उसका कोई गम नहीं है जो मिला है वो लाजवाब है जो मिलने वाला है वो सिर्फ एक ख्वाब है हमें 

रूस में एक झील के किनारे तीन फकीरों का नाम बड़ा प्रसिद्ध हो गया था।

  रूस में एक झील के किनारे तीन फकीरों का नाम बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। लोग लाखों की तादाद में उन फकीरों का दर्शन करने जाने लगे।  यह खबर  सबसे बड़े ईसाई पुरोहित को लगी। उसे बड़ी हैरानी हुई। क्योंकि ईसाई चर्च तो कानूनन ढंग से लोगों को संत घोषित करता है, तभी वे संत हो पाते हैं।

तो प्रीस्ट बड़ा परेशान हुआ। और जब उसे पता चला कि लाखों लोग वहां जाते हैं, तो उसने कहा, यह तो हद हो गई! यह तो चर्च के लिए नुकसान होगा। ये कौन लोग हैं! इनकी परीक्षा लेनी जरूरी है। कहीं ये धर्म की हानि तो नहीं कर रहे , लोगों को बेवकूफ तो नहीं बना रहे , ओर अपना रसूख va पूछ bhi कम हो रही है, बहुत बड़ा नुकसान है ये तो

तो बड़ा प्रीस्ट एक मोटर बोट में बैठकर झील से उन लोगों के पास  गया। जाकर वहां पहुंचा, तो वे तीनों झाड के नीचे बैठे थे। देखकर वह बडा हैरान हुआ। सीधे—सादे ग्रामीण देहाती मालूम पड़ते थे। वह जाकर जब खड़ा हुआ, तो उन तीनों ने झुककर नमस्कार किया, उसके चरण छुए।

उसने समझ  गया कि बिलकुल नासमझ हैं। इनकी क्या हैसियत! उसने बहुत डांटा—, फटकारा कि तुम यहां क्यों भीड़—  इकट्ठी करते हो? उन्होंने कहा, हम नहीं करते। लोग आ जाते हैं। आप उनको समझा दें कि न आए ।  प्रीस्ट ने पूछा कि तुमको किसने कहा कि तुम संत हो?  वो तीनों बोले यही  लोग कहने लगे। हमको कुछ पता नहीं है। प्रीस्ट ने पूछा  तुम्हारी प्रार्थना क्या है? क्या  बाइबिल पढ़ते हो? उन्होंने कहा, हम बिलकुल पढ़े—लिखे नहीं हैं। 
प्रीस्ट ने पूछा तुम प्रार्थना क्या करते हो? क्योंकि चर्च की तो निश्चित प्रार्थना है। तो उन्होंने कहा, हमको तो प्रार्थना कुछ पता ही  नहीं। हम तीनों ने मिलकर एक प्रार्थना  बना ली है।
प्रीस्ट ने कहा  तुम कौन होते हो बनाने वाले प्रार्थना? प्रार्थना तो तय होती है पोप के द्वारा। बिशप्स की बड़ी एसेंबली इकट्ठी होती है, तब एक—एक शब्द का निर्णय होता है। तुम कौन होते  हो प्रार्थना बनाने वाले? तुमने अपनी निजी प्रार्थना बना ली है! भगवान तक जाना हो, तो जो रास्ता प्रीस्ट बताएंगे  उन्हीं तय हुए रास्तों से जाना पड़ता है! खैर ये बताओ  क्या है तुम्हारी प्रार्थना?

वे तीनों बहुत घबरा गए। कंपने लगे। सीधे—सादे लोग थे। तो उन्होंने कहा, हमने तो एक छोटी प्रार्थना बना ली है। आप माफ करें, तो हम बता दें। ज्यादा बड़ी नहीं है, बहुत छोटी—सी है।
प्रीस्ट ने कहा बताओ तो वो तीनों संत बोले 
 यू आर थी, वी आर थ्री , हैव मर्सी आन अस। तुम भी तीन हो, हम भी तीन हैं, हम पर कृपा करो। यही हमारी प्रार्थना है। उस पादरी ने कहा, कम अक्लो,जाहिलो अनपढ़  ग्वारो नासमझो, बंद करो यह बकवास। यह कोई प्रार्थना है? सुनी है कभी? और तुम मजाक करते हो भगवान का कि तुम भी तीन और हम भी तीन हैं?
प्रीस्ट ने कहा कि यह प्रार्थना नहीं चलेगी। आइंदा करोगे, तो तुम नरक जाओगे। तो मैं तुम्हें प्रार्थना बताता हूं आथराइज्‍ड, जो अधिकृत है।
उसने प्रार्थना बताई। उन तीनों को कहलवाई। उन्होंने कहा, एक दफा और कह दें, कहीं हम भूल न जाएं। फिर एक दफा कही। फिर उन्होंने कहा, एक दफा और। कहीं भूल न जाएं। उसने कहा, तुम आदमी कैसे हो? तुम कैसे  संत हो? तो उन्होंने कहा, नहीं, हम कोशिश तो पूरी याद करने की करेंगे, एक दफा आप और दोहरा दें! उसने दोहरा दी
फिर पादरी वापस लौटा उसी बोट से । जब वह आधी झील में था, तब उसने देखा कि पीछे वे तीनों पानी पर भागते चले आ रहे हैं। तब उसके  तो प्राण घबरा गए। उसने अपने माझी से कहा कि यह क्या मामला है? ये तीनों पानी पर कैसे चले आ रहे हैं? उस माझी ने कहा कि मेरे हाथ—पैर खुद ही काँप रहे हैं। यह मामला क्या है! वे तीनों पास आ गए। उन्होंने कहा, जरा रुकना। वह प्रार्थना हम भूल गए; एक बार और बता दो! उस पादरी ने हाथ जोड़े और  कहा कि तुम अपनी ही प्रार्थना जारी रखो। हमारी प्रार्थना तो कर—करके हम मर गए, पर  पानी पर चल नहीं सकते। तुम्हारी प्रार्थना ही ठीक है। तुम वही जारी रखो। वे तीनों हाथ जोड़कर कहने लगे कि नहीं, हमारी प्रार्थना ठीक नहीं है। आपने जो बताई थी, बड़ी लंबी है और शब्द जरा कठिन हैं। और हम भूल गए। हम अनपढ़ ग्वार लोग हैं। हम पर कृपा करो 

 ये तीन आदमी बिलकुल पंडित  या संत नहीं हैं, विनम्र भोले— सीधे सादे  लोग हैं। लेकिन एक स्वयं  अनुभव घटित हुआ है। और स्वयं  अनुभव के लिए किसी प्रकार की  अधिकृत प्रार्थनाओं की जरूरत नहीं है। और स्वयं  अनुभव के लिए कोई लाइसेंस्ट शास्त्रों की जरूरत नहीं है। और स्वयं अनुभव का किसी ने कोई ठेका नहीं लिया हुआ है। हर आदमी हकदार है पैदा होने के साथ ही परमात्मा को जानने का। वह उसका स्वरूपसिद्ध अधिकार है। वह मैं हूं यही काफी है, मेरे परमात्मा से संबंधित होने के लिए। और कुछ भी जरूरी नहीं है। बाकी सब गैर—अनिवार्य है।
जो जानकारी हम इकट्ठी कर लेते हैं, वह जानकारी हमारे सिर पर बोझ हो जाती है। वह जो भीतर की सरलता है,  वो बोझ उसको खा जाता है , सरलता जो है वह  खो जाती है। 
वह अनुभव क्या है? वह अनुभव है,  जहां बूंद सागर में खोती है, तो बूंद को जो अनुभव होता होगा! जैसे व्यक्ति जब समष्टि में खोता है, तो व्यक्ति को जो अनुभव होता है, उस अनुभव का नाम परमात्मा है।
परमात्मा एक अनुभव है, वस्तु नहीं। परमात्मा एक अनुभव है, व्यक्ति नहीं। परमात्मा एक अनुभव है, एक घटना है। और जो भी तैयार है उस घटना के लिए, , उस विस्फोट के लिए, उसमें घट जाती है। और तैयारी के लिए जरूरी है कि अपना अज्ञान तो छोड़े ही, अपना ज्ञान भी छोड़ दें।  और जिस दिन ज्ञान— अज्ञान दोनों नहीं होते, उसी दिन जो होता है, उसका नाम परमात्मा है।

एक बार एक साधु अपने

 एक बार एक साधु अपने

 शिष्यों के साथ बैठा हुआ
 था, उनसे बात कर रहा था।
उनमें से  एक शिष्य ने कहा 
की गुरु जी, हम आपसे 
आपके गुरु के बारे में 
जानना चाहते हैं ,उनका 
क्या नाम था,  ,कितना 
समय आप लोगों ने 
 साथ बिताया।साधु 
ने कहा  तुम्हे आश्चर्य होगा
 मेरा एक गुरु नहीं है । मेरे 
तो कहीं गुरु है , मैने जीवन 
में जिससे भी कोई अच्छी 
बात सीखी उसे मैने अपना 
गुरु मान लिया ,आज मैं 
तुम्हें अपने गुरुओं के बारे में
 बताता हूं, मेरा सबसे
 पहला गुरु है  एक औरत ,

एक बार  में जंगल  मैं
 पेड़ के नीचे विश्राम कर
 रहा था ऊपर पेड़ पर
 बैठे एक कबूतर ने मेरे 
ऊपर विष्ठा कर दी, मैंने 
उसको क्रोध में उसको 
पत्थर मारा, पत्थर उसे
 लगा ,वो चोट को सह 
नहीं सका  और  नीचे 
गिर गया,उसकी मृत्यु
 हो गई , कुछ देर बाद 
मुझे अपनी गलती का 
एहसास हुआ कि मैंने 
इतना क्रोध क्यों किया, 
अपने उस अशांत मन को  
शांत करने ,व अपने पाप के
 प्रायश्चित के लिए मैं जंगल 
में गांवों , में चलना शुरू कर 
दिया,कई दिनों तक  भूखा 
प्यासा  चलता रहा ,कई 
दिन चलने के बाद जब 
एक  शाम 
में थका हारा, भूखा 
प्यासा ,  एक घर के आगे 
रुका,उस घर का  दरवाजा 
खड़काया , अंदर से
 एक औरत बाहर आई 
मैंने उसे बोला कि मुझे
 कुछ जलपान करवा दो ,
उस औरत ने कहा आप 
पांच मिनट विश्राम करो 
में जल पान ले कर आती हूं 
  मेरे पति अभी  अभी खेत 
से आए हैं , उन्हें भोजन
 देना है ,वह अंदर गई  
और  वह भूल  गई की 
बाहर में भी इंतजार कर 
रहा हु , वह औरत पौने
 घंटे तक बाहर नहीं आई 
जब वह बाहर आई तो, 
मैंने उसे क्रोध से देखा 
और कहा  तुमने मुझे
 बहुत लंबा इंतजार 
करवाया, पति की सेवा
 ज्यादा जरूरी है या घर 
आए एक भूखे साधु  
 की, तो उसने बोला कि 
साधु महाराज  मेरे को  
इस तरह क्रोध से  मत 
देखो मैं कोई कबूतर नहीं 
हूं जिसे आप क्रोध से 
  देखोगे तो वह मर जाएगा
, मेरे पति सुबह 5:00 से 
 के खेत पर गए हुए थे 
 अभी शाम को 6.00 
बजे वापस थके हरे आए
 है ,में एक पतिव्रता औरत 
हु ,मेरा पहला कर्तव्य 
बनता है कि मैं उनकी 
सेवा करूं उन्हें जलपान .
दूं, खाना खा कर जब 
वह विश्राम करने लगे ,
तो में उनके पैर दबाने 
लग गई ,उनकी आंख 
लग गई  उनकी नींद  
पक्की हो जाए ,इस 
लिए में बीच में नहीं उठी
 , मेरा इरादा आपका 
निराधार करना नहीं  
था, में अपने बोले गए 
शब्दों के लिए माफी 
मांगती हु यदि उन्होंने 
आपको कष्ट पहुंचाया है 
पति की सेवा करते 
समय मेरे सहज ही 
दिमाग से निकल गया कि 
आप बाहर बैठे हुए हैं 
, क्षमा मांगती हूं साधु 
ने कहा कि नहीं तुम्हें 
क्षमा मांगने की जरूरत 
नहीं है इसमें तुम्हारी 
कोई गलती नहीं है मैं ही
 अपने क्रोध को नियंत्रित 
नहीं कर पाता हूं 
मैने उस औरत का 
अपना प्रथम गुरु
 मान लिया 
क्योंकि उस औरत से
  मुझे यह शिक्षा मिली कि अगर
 आप अपने रिश्तों  में 
अपने कर्तव्य के प्रति 
ईमानदार है तो आपको 
किसी भी प्रकार की 
तपस्या कि,या तप, 
बल, ध्यान की जरूरत 
नहीं है जो सिद्धि लोग
 कहीं वर्षो तक तपस्या 
करके प्राप्त करते हैं 
आप ईमानदारी से 
अपने कर्तव्य को 
निभाते हुए उस सिद्धि 
को प्राप्त हो जाते है

एक बार की  ओर 
बात है चलते-चलते मुझे 
रात हो गई मैं गांव में 
पहुंचा,में बहुत थक
 गया था  ,तो वहां मैं
 एक स्थान ढूंढने लगा
 जहां जाकर मैं विश्राम
 कर सकूं,  मुझे कोई 
स्थान मिल नहीं रहा था ,
तभी मैंने देखा कि एक 
व्यक्ति कुछ तोड़ रहा है ,
मैं उसके पास गया ,मैंने 
उससे पूछा कि क्या 
तुम मुझे आसपास 
कोई स्थान बता सकते 
हो, जहां में जाकर 
विश्राम कर सकूं ,तो 
उस व्यक्ति ने कहा 
कि पास में एक एक 
मंदिर है , परन्तु इस
 समय मंदिर बंद हो
 चुका है ,तो आप इस 
समय मेरे घर चलकर 
आराम कर सकते हो,
अगर आप को कोई 
आपत्ति  न हो तो
 क्योंकि , मैं पेशे से 
एक चोर हूं, साधु ने 
कहा मुझे इसमें कोई 
आपत्ति नहीं है, तुम्हारे 
घर आराम कर लेता 
हूं ,मैं वहां आराम करने 
गया ,मेरी वहां पर 
तबियत बिगड़ गई 
इसलिए मैंने तीन से
 चार दिन और  वहीं
 पर आराम किया ,
इस दौरान मैंने देखा 
कि वह रोज रात को 
चोरी करने जाता 
असफल हो जाता
लेकिन निराश नहीं 
होता था,  वह अगली 
रात को फिर भगवान 
के आगे माथा टेक कर 
प्रार्थना करता की  
 आज मुझे सफल जरूर 
करना ,वह पूरी लगन के 
साथ दोबारा चोरी करने
 चला जाता,हर बार 
असफल होता पर निराश 
नहीं होता , फिर  चौथे 
दिन उसने काफी बड़ा
 हाथ मार लिया ,और
 उस दिन वह  बहुत
 खुश था ,और अब 
 मेरी तबीयत भी  ठीक
 हो चुकी थी ,तो मैं
 जब  वहां से जाने 
लगा था ,तो मैंने
 उसे समझाया कि 
तुम यह गलत काम  
छोड़ दो, 
वह मान गया ,इस 
शर्त के साथ की में 
उसे कोई अच्छा काम 
दिला दूं में उसे ले कर
 राजा के पास गया , 
राजा को सारी बात
 बताई राजा चोर की 
ईमानदारी से खुश हुआ
राजा ने चोर से उसकी
 योग्यता पूछी, चोर ने 
कहा में राज्य में कहीं
 चोरी न हो ,उसका पुख्ता 
इंतजाम कर सकता हु, 
,व जासूसी जैसा कार्य 
बड़ी दक्षता से कर सकता 
हु , राजा ने ,  मंत्री को 
बोल कर उसे उसकी 
योग्यता के अनुसार 
कार्य पर लगवा दिया, 
फिर में वहां से चला गया
 ,उम्मीद करता हु वह
 अपना कार्य लगन va
 ईमानदारी se kr rha
 hoga 
 चोर  मेरा  दूसरा गुरु था  
जिससे मुझे सीखने को 
मिला कि जो भी कम 
करो पूरी लगन और 
ईमानदारी से करो  ,
 बहुत बार  असफलता
 मिलेगी ,परन्तु निराश 
नहीं होना ,अपने प्रभु 
पर विश्वास रखो और 
अगर आपको कभी
 जीवन में  अच्छा 
रास्ता चुनने का 
अवसर मिले तो 
उस अवसर को 
हाथ  से जाने मत  दो,

एक बार में एक तालाब 
के किनारे विश्राम कर
 रहा था मैंने देखा एक 
बहुत ही प्यासा कुत्ता 
वहां आया लेकिन वह 
बार-बार पानी के पास
 जाए, और फिर दूर हो 
जाए शायद वह  अपनी
 परछाई से डर रहा था, 
आखिर उससे अपनी 
प्यास बर्दाश्त नहीं हुई 
उसने पानी के अंदर 
अपना मुंह डाल दिया,
 जैसे  ही उसने मुंह पानी 
में डाला , उसकी परछाई 
टूट गई, और उसने शांति
 से पानी पिया, और खुशी
 से तृप्त हो वहां से चला 
गया , मैंने उस दिन उसे
 अपना गुरु बनाया, 
क्योंकि मैंने उस कुत्ते  
से उस दिन सिखा
 कि अगर आप अपने 
डर से आगे कूद जाते 
हो तो आप जीत जाते
 हो, कोई डर  आपकी
 लक्ष्य पाने की भूख या
 प्यास से बड़ा नहीं हो 
सकता डर के आगे ही 
जीत है , 

एक बार मैं एक मंदिर
 में विश्राम कर रहा था तभी
 , एक बच्चा मेरे पास आया 
,उसके हाथ में जलता 
 हुआ दिया था, मैंने उस 
बच्चे  के ज्ञान को
 जांचने के  लिए 
उससे पूछा क्या तुम 
जानते हो कि इस
 दिए जो यह लो  
है यह कहां से 
आई है
 तो उसने उस 
लो को बुझा दिया , 
और मुझसे  कहा 
 क्या आप जानते 
हो यह  अब कहां गई है
 तो मैंने उस दिन
 उस बच्चे  को 
अपना गुरु बना लिया,  कि 
जरूरी नहीं है कि जो 
आपके पास   है वही
 ज्ञान है ,ज्ञान की कोई
 सीमा नहीं है, वह छोटे 
से बच्चे के पास भी
 हो सकता है, उसने 
 मेरे सवाल का जवाब
  इस तरीके से सवाल 
से दिया कि मुझे 
जवाब भी मिल
 गया और मेरे सामने 
एक सवाल भी 
खड़ा हो गया

pizza me maths ki class

 एक दिन गणित के एक समझदार और शांत स्वभाव वाले शिक्षक अपने छात्रों के साथ एक रेस्टोरेंट में पिज्जा खाने गए। मेनू देखकर उन्होंने दो 9 इंच व्यास वाले पिज्जा का ऑर्डर दिया, ताकि सभी बच्चों को भरपेट स्वादिष्ट पिज्जा मिल सके। कुछ देर बाद वेटर (थोड़ा आत्मविश्वास के साथ) चार गोल पिज्जा लेकर आया, जो पांच-पांच इंच व्यास के थे। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “सर, 9 इंच का पिज्जा तो खत्म हो गया है, इसलिए हम आपको 5 इंच के चार पिज्जा दे रहे हैं। आपको तो 2 इंच एक्स्ट्रा पिज्जा मुफ्त में मिल रहा है!”

गुरुजी मुस्कुराए, लेकिन मुस्कान में गणित की गंभीरता छिपी हुई थी। उन्होंने बड़े ही सौम्य स्वर में वेटर से कहा, “बेटा, रेस्टोरेंट के मालिक को बुला दो, उनसे थोड़ी पढ़ाई की बात करनी है।” कुछ ही पलों में मालिक हाजिर हो गया, आत्मविश्वास से भरा हुआ, मानो उसने कोई बड़ी सेवा कर दी हो।

गुरुजी ने विनम्रता से पूछा, “बेटा, आप कितने पढ़े-लिखे हैं?”
मालिक ने गर्व से कहा, “सर, मैं B.Sc. ग्रेजुएट हूँ।”
गुरुजी ने मुस्कुरा कर अगला सवाल दागा, “गणित कहां तक पढ़ा है?”
“सर, ग्रेजुएशन तक।”
“बहुत बढ़िया,” गुरुजी बोले, “तो बताइए, वृत्त का क्षेत्रफल कैसे निकालते हैं?”
“सर, πr²,” मालिक ने तुरंत जवाब दिया।

अब गुरुजी का चेहरा गंभीर हो गया। बोले, “मैंने आपसे दो 9 इंच डायमीटर के पिज्जा मंगवाए थे। यानी हर पिज्जा का रेडियस 4.5 इंच। उसका क्षेत्रफल होगा π × 4.5² यानी करीब 63.62 स्क्वायर इंच। दो पिज्जा का टोटल हुआ करीब 127.24 स्क्वायर इंच। आप सहमत हैं?”
मालिक बोला, “बिलकुल सर।”

गुरुजी ने आगे कहा, “अब आपने जो चार 5 इंच के पिज्जा दिए हैं, उनका रेडियस 2.5 इंच हुआ। एक का एरिया 19.64 स्क्वायर इंच। चार का टोटल एरिया हुआ 78.56 स्क्वायर इंच। यानी आपने न सिर्फ मेरी मात्रा घटाई, बल्कि यह कहकर उल्लू भी बनाया कि मुझे 2 इंच का पिज्जा मुफ्त में दिया जा रहा है!”

मालिक अब थोड़ा पसीने-पसीने हो गया। गुरुजी रुके नहीं, बोले, “अगर आप मुझे एक और 5 इंच का पिज्जा दे भी दें, तब भी टोटल एरिया 98.2 स्क्वायर इंच ही होगा, जो मेरे ऑर्डर के एरिया से कहीं कम है। अब बताइए, कहां है वो ‘फ्री’ वाला पिज्जा?”

रेस्टोरेंट का मालिक निशब्द खड़ा था। चेहरे पर अब वो आत्मविश्वास नहीं, बल्कि पश्चाताप झलक रहा था। आखिरकार, उसने चुपचाप वही चार पिज्जा एक साथ गुरुजी को सौंप दिए और दिल में ये सीख ले ली — "गणित के शिक्षक को कभी भी बेवकूफ समझने की भूल मत करना।"

और बच्चों ने उस दिन सिर्फ पिज्जा ही नहीं, ज़िंदगी का एक बड़ा पाठ भी सीखा — "हर चीज़ का हिसाब सिर्फ स्वाद से नहीं, अक्ल से भी लगाना चाहिए!"

शिक्षकों को कभी भी अंडरएस्टिमेट न करें। धन्यवाद!

कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा

  कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा एक मुसाफ़िर तपते रेगिस्तान में भटक गया था। उसके पास जो थोड़ा-बहुत खाने-पीने का साम...