Monday, July 28, 2025
बेटी ने बाप का कर्जा ऐसे उतारा अपनी बुद्धिमता से
Tuesday, July 1, 2025
कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा
कुछ डालोगे ,कुछ दोगे जीवन को जिंदगी को तो ही कुछ मिलेगा
एक मुसाफ़िर तपते रेगिस्तान में भटक गया था। उसके पास जो थोड़ा-बहुत खाने-पीने का सामान था, वह तेज़ी से ख़त्म हो गया। दो दिन से उसकी प्यास बुझ नहीं रही थी। उसे भीतर से लग रहा था कि अगर अगले कुछ घंटों में पानी नहीं मिला, तो उसकी साँसें थम जाएँगी। पर कहीं न कहीं उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ न कुछ चमत्कार तो ज़रूर होगा और उसे पानी मिल जाएगा। फिर भी, उसके मन में उम्मीद की एक किरण बची हुई थी।
तभी, दूर उसे एक छोटी सी झोंपड़ी दिखाई दी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। पहले भी वह मरीचिका और धोखे के कारण ठगा जा चुका था। लेकिन अब उसके पास विश्वास करने के सिवा कोई और रास्ता भी तो नहीं था। आख़िरकार, यह उसकी आख़िरी उम्मीद थी। अपनी बची हुई ताक़त समेटकर वह झोंपड़ी की ओर बढ़ने लगा। जैसे-जैसे वह नज़दीक पहुँचता गया, उसकी उम्मीद बढ़ती गई, और इस बार किस्मत भी उस पर मेहरबान थी। सचमुच, वहाँ एक झोंपड़ी खड़ी थी।
लेकिन यह क्या? झोंपड़ी तो बिल्कुल सुनसान पड़ी थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों से वहाँ कोई इंसान न आया हो। फिर भी, पानी की आस में वह व्यक्ति झोंपड़ी के अंदर दाखिल हुआ। अंदर का नज़ारा देखकर उसे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं हुआ। वहाँ एक हैंडपंप लगा हुआ था। उस व्यक्ति में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया। पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसता हुआ वह तेज़ी से हैंडपंप चलाने लगा। लेकिन हैंडपंप तो कब का सूख चुका था। वह व्यक्ति निराश हो गया। उसे लगा कि अब उसे मौत से कोई नहीं बचा सकता। वह बेदम होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
तभी उसकी नज़र झोंपड़ी की छत से लटकी एक पानी से भरी बोतल पर पड़ी। वह किसी तरह रेंगता हुआ उसकी तरफ़ बढ़ा और उसे खोलकर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल पर चिपका एक कागज़ दिखाई दिया। उस पर लिखा था - "इस पानी का इस्तेमाल हैंडपंप चलाने के लिए करो और बोतल को वापस भरकर रखना मत भूलना।"
यह एक अजीब दुविधा थी। उस व्यक्ति को समझ नहीं आ रहा था कि वह पानी पिए या उसे हैंडपंप में डालकर चालू करे। उसके मन में कई सवाल उठने लगे - अगर पानी डालने पर भी पंप नहीं चला तो? अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुई तो? क्या पता ज़मीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो? लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े? क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो? वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।
फिर, कुछ देर सोचने के बाद उसने बोतल खोली और काँपते हाथों से पानी पंप में डालने लगा। पानी डालकर उसने भगवान से प्रार्थना की और पंप चलाने लगा। एक, दो, तीन... और हैंडपंप से ठंडा-ठंडा पानी निकलने लगा। वह पानी किसी अमृत से कम नहीं था। उस व्यक्ति ने पेट भरकर पानी पिया, उसकी जान में जान आ गई। उसका दिमाग़ फिर से काम करने लगा। उसने बोतल में दोबारा पानी भरा और उसे छत से लटका दिया।
जब वह यह सब कर रहा था, तभी उसे अपने सामने एक और काँच की बोतल दिखाई दी। खोलने पर उसमें एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था, जिसमें रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया गया था। उस व्यक्ति ने रास्ता याद कर लिया और नक्शे वाली बोतल को वापस वहीं रख दिया। इसके बाद उसने अपनी बोतलों में (जो उसके पास पहले से थीं) पानी भरा और वहाँ से चलने लगा।
कुछ दूर जाने के बाद उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा, फिर कुछ सोचकर वह वापस उस झोंपड़ी में गया और पानी से भरी बोतल पर चिपके कागज़ को उतारकर उस पर कुछ लिखने लगा। उसने लिखा - "मेरा विश्वास कीजिए, यह हैंडपंप काम करता है।"
यह कहानी पूरे जीवन के बारे में है। यह हमें सिखाती है कि बुरी से बुरी स्थिति में भी हमें अपनी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। और इस कहानी से यह भी सीख मिलती है कि कुछ बहुत बड़ा पाने से पहले हमें अपनी ओर से भी कुछ देना होता है। जैसे उस व्यक्ति ने नल चलाने के लिए मौजूद सारा पानी उसमें डाल दिया।
देखा जाए तो इस कहानी में पानी जीवन में मौजूद महत्वपूर्ण चीज़ों को दर्शाता है, कुछ ऐसी चीज़ें जिनकी हमारी नज़रों में ख़ास कीमत है। किसी के लिए मेरा यह संदेश ज्ञान हो सकता है, तो किसी के लिए प्रेम, तो किसी और के लिए पैसा। यह जो कुछ भी है, उसे पाने के लिए पहले हमें अपनी तरफ़ से उसे कर्म रूपी हैंडपंप में डालना होता है, और फिर बदले में आप अपने योगदान से कहीं ज़्यादा मात्रा में उसे वापस पाते हैं।
🎈🎈प्रेरक कहानी🎈🎈 "कछुआ और खरगोश" कहानी एक नये अन्दाज़ में – वो कहानी जो आपने नहीं सुनी.....
🎈🎈प्रेरक कहानी🎈🎈
amar prem
एक बार की बात है,
एक छोटे से गांव में
मोहन और रुक्मिणी
दो पड़ोसि रहते थे , वे बचपन से ही एक-दूसरे के अच्छे दोस्त रहे थे। जैसे-जैसे वक्त बीता , उनका रिश्ता और भी जड़े पकड़ता गया, और वे अब एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे थे ,जब वे बारहवीं कक्षा में आए, तब मोहन को एहसास होने लगा कि रुक्मिणी के प्रति उसके दिल में दोस्ती से आगे बढ़ कर कुछ है , वह रुक्मिणी से जब बात करता था , उसकी आंखों में खो जाता था। लेकिन वह दोस्ती कहीं खत्म न हो जाए इस डर से अपने प्यार के इजहार से डरता था ।रुक्मिणी भी हमेशा मोहन के साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूंढती थी, और जब भी मोहन के पास होती थी बहुत खुश रहती थीं। वह भी अपने प्यार के इजहार से डरती थी कि कहीं मोहन से उसकी दोस्ती खत्म न हों जाए ।
एक दिन मोहन ने आखिरकार सही समय देख कर रुक्मिणी को अपने दिल की बात बता दी । रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी।उसकी आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े।रुक्मिणी ने अपने अंदाज से अपनी आंखों से अपने प्यार का इजहार कर अपनी मन की बात जाहिर कर दी, दोनो को ऐसा लग रहा था जैसे की मन से कोई बोझ उतर गया हो ।
दोनों ने अपने परिवारों में ये बात बता दी,दोनों के परिवारों को इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी,जल्द ही दोनों ने विवाह कर लिया, जैसा कि सभी के साथ होता है ,मोहन va रुक्मिणी ke साथ भी होना शुरू हो गया , अब जीवन पहले जैसा भी नहीं रहा था , जिम्मेदारियां लापरवाहियों va बेपरवायियों पर अब हावी हो गई थी, जीवन की नई चुनौतियां मुंह फाड़े सामने खड़ी थी , वैसे भी कहा जाता है शादी प्रेम की समाधी ,दोनो में अब किसी न किसी बात पर तकरार हो जाती थी ,फिर दोनों एक दूसरे से कई कई दिनों तक बात नहीं करते थे , एक दिन तो गलतफहमी इतनी बड़ी की दोनों में खूब बहस हो गई , रुक्मिणी अपना कुछ जरूरी सामान लेकर अपनी मां के पास चली गई, मोहन भी काम से छुट्टी लेकर अपने मां बाप के पास चला गया ,जैसा कि कहा जाता है, सच्चा प्यार किसी भी मुश्किल को हरा सकता है, सबसे बेहतरीन रिश्ते पवित्र वा सच्चे प्यार से बनते है, दोनों अपनी मानसिक स्थिति अपने पेरेंट्स से छिपा नहीं सके ,दोनों के पेरेंट्स ने दोनों को समझाया कि, ये एक साधारण सी बात है किसी रिश्ते में बहस या तकरार होना ,एक दूसरे से शादी शुदा जीवन में तकरार होना नॉर्मल है अगर तकरार नहीं होती तो वह एबनॉर्मल है, फिर किसी शायर ने कहा भी है कुछ दूरियां दरमियान रहने दो , इससे भी नजदीकिया निखरती है, दोनों को अब एक दूसरे की कमी खलने लगी थी ,लेकिन मुश्किल ये थी शुरुआत कौन करे , आखिर मोहन के पेरेंट्स ने मोहन को समझाया कि रुक्मिणी हिचकिचा रही होगी ,तुम्हे फोन करने से ,तुम ही उसे फोन कर लो, मोहन ने रुक्मिणी को सुबह फोन करके बोला में तुम्हे कल लेने आ रहा हूं,रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी ,रुक्मिणी पूरे अधिकार व हक से बोली कल नहीं तुम मुझे आज ही लेने आ रहे हो , मोहन उस पल मिली खुशी को छिपा नहीं पा रहा था , मोहन दोपहर को ही रुक्मिणी के घर पहुंच गया , यहां दो नियम अपना काम बेखूबी से कर रहे थे, तकरार खत्म अगर करनी है तो बिना नई बहस के शुरू होने से पहले कर दो , की तेरी ये गलती, तेरी वो गलती ,ये किए बगैर कर दो , अन्यथा तकरार के बीज फिर कभी भी नई बहस बन कर फूट पड़ेंगे, दूसरा हर, बहस हर झगड़ा, हर तकरार अगर तुरंत न खत्म की जाए तो उसे तेजी से बढ़ने वाली बेल की तरह से फिर तुरंत कंट्रोल नहीं किया जा सकता है ।
एक बार की बात है,
एक छोटे से गांव में
मोहन और रुक्मिणी
दो पड़ोसि रहते थे ,
वे बचपन से ही एक-
दूसरे के अच्छे दोस्त रहे
थे। जैसे-जैसे वक्त बीता ,
उनका रिश्ता और भी जड़े
पकड़ता गया, और वे अब
एक-दूसरे के साथ ज्यादा
समय बिताने लगे थे ,जब
वे बारहवीं कक्षा में आए,
तब मोहन को एहसास होने
लगा कि रुक्मिणी के प्रति
उसके दिल में दोस्ती से
आगे बढ़ कर कुछ है , वह
रुक्मिणी से जब बात करता
था , उसकी आंखों में खो
जाता था। लेकिन वह
दोस्ती कहीं खत्म न हो
जाए इस डर से अपने
प्यार के इजहार से डरता
था ।रुक्मिणी भी हमेशा
मोहन के साथ वक़्त
बिताने के बहाने ढूंढती थी,
और जब भी मोहन के
पास होती थी बहुत खुश
रहती थीं। वह भी अपने
प्यार के इजहारसे डरती
थी कि कहीं मोहन से उसकी
दोस्ती खत्म न हों जाए ।
एक दिन मोहन ने आखिरकार
सही समय देख कर रुक्मिणी
को अपने दिल की बात बता दी ।
रुक्मिणी तो जैसे इसी पल का
इंतजार कर रही थी।उसकी आंखों
से खुशी के आंसू निकल पड़े।
रुक्मिणी ने अपने अंदाज से
अपनी आंखों से अपने प्यार का
इजहार कर अपनी मन की बात
जाहिर कर दी, दोनो को ऐसा लग
रहा था जैसे की मन से कोई
बोझ उतर गया हो ।
दोनों ने अपने परिवारों में
ये बात बता दी,दोनों के
परिवारों को इस रिश्ते से
कोई आपत्ति नहीं थी,जल्द
ही दोनों ने विवाह कर लिया,
जैसा कि सभी के साथ होता
है ,मोहन va रुक्मिणी
ke साथ भी होना शुरू
हो गया , अब जीवन
पहले जैसा भी नहीं
रहा था , जिम्मेदारियां
लापरवाहियों va बेपरवायियों
पर अब हावी हो गई थी,
जीवन की नई चुनौतियां
मुंह फाड़े सामने खड़ी
थी , वैसे भी कहा जाता है
शादी प्रेम की समाधी ,
दोनो में अब किसी न
किसी बात पर तकरार
हो जाती थी ,फिर दोनों
एक दूसरे से कई कई
दिनों तक बात नहीं
करते थे , एक दिन तो
गलतफहमी इतनी बड़ी
की दोनोंमें खूब बहस
हो गई , रुक्मिणी
अपना कुछ जरूरी
सामान लेकरअपनी मां
के पास चली गई,
मोहन भी काम से छुट्टी
लेकर अपने मां बाप के
पास चला गया ,जैसा
कि कहा जाता है, सच्चा
प्यार किसी भी मुश्किल को
हरा सकता है,सबसे बेहतरीन
रिश्ते पवित्र वा सच्चे प्यार से
बनते है, दोनों अपनी मानसिक
स्थिति अपने पेरेंट्स से छिपा
नहीं सके ,दोनों के पेरेंट्स ने
दोनों को समझाया कि, ये एक
साधारण सी बात है किसी रिश्ते
में बहस या तकरार होना ,एक
दूसरे से शादी शुदा जीवन में
तकरार होना नॉर्मल है अगर
तकरार नहीं होती तो वह
एबनॉर्मल है, फिर किसी
शायर ने कहा भी है कुछ
दूरियां दरमियान रहने
दो , इससे भी नजदीकिया
निखरती है, दोनों
को अब एक दूसरे की
कमी खलनेलगी थी
,लेकिन मुश्किल ये थी
शुरुआत कौन करे ,आखिर
मोहनके पेरेंट्स ने
मोहन को समझाया
कि रुक्मिणी हिचकिचा
रही होगी तुम्हे फोन
करने से ,तुम ही उसे
फोन कर लो, मोहन ने
रुक्मिणीको सुबह फोन
करके बोला में
तुम्हे कल लेने आ रहा
हूं,रुक्मिणी तो जैसे इसी
पल का इंतजार कर
रही थी ,रुक्मिणी पूरे
अधिकार व हक से बोली
कल नहीं तुम मुझे आज
ही लेने आ रहे हो , मोहन
उस पल मिली खुशी को
छिपा नहीं पा रहा था
मोहन दोपहर को ही
रुक्मिणी के घर पहुंच गया ,
यहां दो नियम अपना काम
बेखूबी से कर रहे थे,
तकरार खत्म अगर करनी
है तो बिना नई बहस के
शुरू होने से पहले कर
दो , की तेरी ये गलती,
तेरी वो गलती ,ये किए
बगैर कर दो , अन्यथा
तकरार के बीज
फिर कभी भी नई बहस
बन कर फूट पड़ेंगे,
दूसरा हर, बहस
हर झगड़ा, हर तकरार
अगर तुरंत न खत्म की
जाए तो उसे तेजी से बढ़ने
वाली बेल की तरह से
फिर तुरंत कंट्रोल नहीं
किया जा सकता है ।
billi nhi paalni
एक महात्मा जी गांव में झोपड़ी में रहते थे ।
रूस में एक झील के किनारे तीन फकीरों का नाम बड़ा प्रसिद्ध हो गया था।
रूस में एक झील के किनारे तीन फकीरों का नाम बड़ा प्रसिद्ध हो गया था। लोग लाखों की तादाद में उन फकीरों का दर्शन करने जाने लगे। यह खबर सबसे बड़े ईसाई पुरोहित को लगी। उसे बड़ी हैरानी हुई। क्योंकि ईसाई चर्च तो कानूनन ढंग से लोगों को संत घोषित करता है, तभी वे संत हो पाते हैं।
एक बार एक साधु अपने
एक बार एक साधु अपने
pizza me maths ki class
एक दिन गणित के एक समझदार और शांत स्वभाव वाले शिक्षक अपने छात्रों के साथ एक रेस्टोरेंट में पिज्जा खाने गए। मेनू देखकर उन्होंने दो 9 इंच व्यास वाले पिज्जा का ऑर्डर दिया, ताकि सभी बच्चों को भरपेट स्वादिष्ट पिज्जा मिल सके। कुछ देर बाद वेटर (थोड़ा आत्मविश्वास के साथ) चार गोल पिज्जा लेकर आया, जो पांच-पांच इंच व्यास के थे। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “सर, 9 इंच का पिज्जा तो खत्म हो गया है, इसलिए हम आपको 5 इंच के चार पिज्जा दे रहे हैं। आपको तो 2 इंच एक्स्ट्रा पिज्जा मुफ्त में मिल रहा है!”
गुरुजी मुस्कुराए, लेकिन मुस्कान में गणित की गंभीरता छिपी हुई थी। उन्होंने बड़े ही सौम्य स्वर में वेटर से कहा, “बेटा, रेस्टोरेंट के मालिक को बुला दो, उनसे थोड़ी पढ़ाई की बात करनी है।” कुछ ही पलों में मालिक हाजिर हो गया, आत्मविश्वास से भरा हुआ, मानो उसने कोई बड़ी सेवा कर दी हो।
गुरुजी ने विनम्रता से पूछा, “बेटा, आप कितने पढ़े-लिखे हैं?”
मालिक ने गर्व से कहा, “सर, मैं B.Sc. ग्रेजुएट हूँ।”
गुरुजी ने मुस्कुरा कर अगला सवाल दागा, “गणित कहां तक पढ़ा है?”
“सर, ग्रेजुएशन तक।”
“बहुत बढ़िया,” गुरुजी बोले, “तो बताइए, वृत्त का क्षेत्रफल कैसे निकालते हैं?”
“सर, πr²,” मालिक ने तुरंत जवाब दिया।
अब गुरुजी का चेहरा गंभीर हो गया। बोले, “मैंने आपसे दो 9 इंच डायमीटर के पिज्जा मंगवाए थे। यानी हर पिज्जा का रेडियस 4.5 इंच। उसका क्षेत्रफल होगा π × 4.5² यानी करीब 63.62 स्क्वायर इंच। दो पिज्जा का टोटल हुआ करीब 127.24 स्क्वायर इंच। आप सहमत हैं?”
मालिक बोला, “बिलकुल सर।”
गुरुजी ने आगे कहा, “अब आपने जो चार 5 इंच के पिज्जा दिए हैं, उनका रेडियस 2.5 इंच हुआ। एक का एरिया 19.64 स्क्वायर इंच। चार का टोटल एरिया हुआ 78.56 स्क्वायर इंच। यानी आपने न सिर्फ मेरी मात्रा घटाई, बल्कि यह कहकर उल्लू भी बनाया कि मुझे 2 इंच का पिज्जा मुफ्त में दिया जा रहा है!”
मालिक अब थोड़ा पसीने-पसीने हो गया। गुरुजी रुके नहीं, बोले, “अगर आप मुझे एक और 5 इंच का पिज्जा दे भी दें, तब भी टोटल एरिया 98.2 स्क्वायर इंच ही होगा, जो मेरे ऑर्डर के एरिया से कहीं कम है। अब बताइए, कहां है वो ‘फ्री’ वाला पिज्जा?”
रेस्टोरेंट का मालिक निशब्द खड़ा था। चेहरे पर अब वो आत्मविश्वास नहीं, बल्कि पश्चाताप झलक रहा था। आखिरकार, उसने चुपचाप वही चार पिज्जा एक साथ गुरुजी को सौंप दिए और दिल में ये सीख ले ली — "गणित के शिक्षक को कभी भी बेवकूफ समझने की भूल मत करना।"
और बच्चों ने उस दिन सिर्फ पिज्जा ही नहीं, ज़िंदगी का एक बड़ा पाठ भी सीखा — "हर चीज़ का हिसाब सिर्फ स्वाद से नहीं, अक्ल से भी लगाना चाहिए!"
शिक्षकों को कभी भी अंडरएस्टिमेट न करें। धन्यवाद!
आत्मज्ञान का: सफलता के लिए आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और आंतरिक शक्ति की प्रेरणादायक कहानी
आत्मज्ञान का: सफलता के लिए आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और आंतरिक शक्ति की प्रेरणादायक कहानी
यह शिक्षाप्रद हिंदी कहानी चार विद्वानों के दृष्टिकोण से यह समझाती है कि आत्मज्ञान, आत्मविश्वास, कठोर परिश्रम और इच्छाशक्ति कैसे जीवन में महान सफलता की ओर ले जाते हैं।
मर्म आत्मज्ञान का – सफलता की कुंजी
हर व्यक्ति अपने जीवन में सफलता की तलाश करता है, लेकिन सच्ची सफलता केवल बाहरी संसाधनों या भाग्य से नहीं मिलती। यह कहानी "मर्म आत्मज्ञान का" हमें बताती है कि भीतर की शक्ति को पहचानना, आत्मज्ञान प्राप्त करना और अपने ऊपर विश्वास रखना ही असली सफलता का रास्ता है। आइए जानते हैं चार विद्वानों के विचारों के माध्यम से सफलता के मूल स्तंभों को।
चार विद्वानों की दृष्टि – सफलता की परिभाषा
पहला विद्वान – कार्य के प्रति समर्पण
"जो भी कार्य करो, उसे पूरे मन और लगन से करो। जब इंसान अपने कार्य में पूरी तरह डूब जाता है, तो सफलता उसे अवश्य मिलती है।"
पहला विद्वान कार्य के प्रति समर्पण को सबसे बड़ा गुण मानता है। वह कहता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने काम को पूरे दिल से करे, तो उसे रोकने की ताकत किसी में नहीं होती।
दूसरा विद्वान – आत्मविश्वास की शक्ति
"खुद पर अटूट विश्वास रखने वाला व्यक्ति कोई भी कार्य कर सकता है। आत्मविश्वास से बड़ी कोई शक्ति नहीं।"
दूसरा विद्वान आत्मविश्वास को सफलता की सबसे सशक्त चाबी मानता है। जो व्यक्ति खुद पर विश्वास करता है, वह किसी भी कठिनाई से पार पा सकता है।
तीसरा विद्वान – इच्छाशक्ति और परिश्रम
"तीव्र इच्छाशक्ति और कठोर परिश्रम ही सफलता का दूसरा नाम है। इसका कोई विकल्प नहीं।"
तीसरे विद्वान के अनुसार मेहनत और इच्छाशक्ति का मेल ही किसी भी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने की राह बनाता है।
चौथा विद्वान – आत्मज्ञान का मर्म
"हर व्यक्ति के भीतर शक्ति का भंडार छिपा होता है, बस जरूरत है उसे पहचानने की।"
चौथा विद्वान आत्मज्ञान को सबसे बड़ा रहस्य मानता है। जब कोई व्यक्ति खुद को जान लेता है, अपनी शक्ति और महत्व को समझ जाता है, तो उसे प्रेरणा देने की ज़रूरत नहीं होती। वह अपने आप ही सफलता की राह पर चल पड़ता है।
आत्मज्ञान – सफलता की सबसे गहरी जड़
जब इंसान अपने भीतर झाँकता है, तो उसे पता चलता है कि वह कितना सक्षम है। आत्मज्ञान वह रोशनी है जो व्यक्ति को अंधकार से बाहर निकालती है। यही आत्मज्ञान, आत्मविश्वास, परिश्रम और इच्छाशक्ति को जन्म देता है।
कहानी से सीख – आत्मज्ञान क्यों ज़रूरी है?
आत्मज्ञान से आत्मविश्वास आता है
कार्य में मन लगाना आसान होता है
मनोबल मजबूत होता है
सफलता अपने आप पास आती है
निष्कर्ष – खुद को जानो, दुनिया को जीतो
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि असली परिवर्तन बाहर नहीं, भीतर से शुरू होता है। जब हम अपनी क्षमताओं को पहचान लेते हैं, तो कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं लगता। सफलता का मार्ग आत्मज्ञान से होकर ही जाता है।
अगर आपको यह प्रेरणादायक हिंदी कहानी पसंद आई, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज़रूर साझा करें। क्या आप भी आत्मज्ञान को सफलता की कुंजी मानते हैं? नीचे कमेंट करके अपने विचार बताइए!
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mhatma va shaktiya
एक घना जंगल… नीरवता… और उसी मौन के बीच एक महात्मा साधना में लीन थे… कई वर्षों से…
पर अचानक उनकी आंख खुलती है… और सामने खड़ी हैं… चार सुंदर युवतियां।
महात्मा (आश्चर्य से)
"तुम कौन हो? और इस निर्जन वन में क्या कर रही हो? मैंने तो आज तक तुम्हें यहां नहीं देखा…"
युवतियां (मुस्कुराते हुए)
"हम यहीं रहती हैं बाबा… तुम्हारे साथ… तुम्हारे भीतर।"
महात्मा (चौंकते हुए)
"मेरे भीतर?"
पहली युवती (गंभीर स्वर में)
"मैं बुद्धि हूं… तुम्हारे मस्तिष्क में निवास करती हूं।"
दूसरी (नम्रता से)
"मैं लज्जा हूं… तुम्हारी आंखों में रहती हूं।"
तीसरी (ममता से)
"मैं दया हूं… तुम्हारे हृदय में वास करती हूं।"
चौथी (सबल स्वर में)
"और मैं शक्ति हूं… तुम्हारे पूरे शरीर में समाई हूं।"
Narrator (धीरे से)
महात्मा मुस्कराए… और बोले…
महात्मा
"तुम सब मेरे भीतर हो… लेकिन मैं यह शरीर नहीं हूं… मैं तो उस चेतना का अंश हूं जो सबके पार है…"
ध्यान मुद्रा, फिर थोड़ी देर बाद आंख खुलती हैं]
अब सामने खड़े हैं चार नवयुवक… तेजस्वी, लेकिन आंखों में एक अलग सी चमक।
महात्मा (फिर से)
"तुम कौन हो? और कहां से आए हो?"
पहला युवक (तेज़ आवाज में)
"मैं क्रोध हूं… तुम्हारे मस्तिष्क में घर करता हूं। जब मैं आता हूं… तो बुद्धि भाग जाती है…"
दूसरा युवक (आंखें तरेरते हुए)
"मैं काम हूं… आंखों में रहता हूं… और मेरे आते ही लज्जा चली जाती है… पहचान मिट जाती है…"
तीसरा (लोभी स्वर में)
"मैं लोभ हूं… दिल में रहता हूं… और जब मैं आता हूं… दया भाग जाती है…"
चौथा (धीमी, भारी आवाज में)
"मैं मोह हूं… पूरे शरीर को जकड़ लेता हूं… और जब मैं आता हूं, तो शक्ति निष्क्रिय हो जाती है…"
Narrator
महात्मा शांत होकर बोले…
महात्मा
"तुम सब मेरे शरीर में हो… लेकिन मैं न बुद्धि हूं, न क्रोध… न मोह… मैं इन सबसे परे हूं… मैं आत्मा हूं, मैं साधक हूं… और मेरी यात्रा है प्रभु तक…"
– दिव्यता का आभास]
(ऊँची आवाज में)
जब कोई साधक गुरु के मार्गदर्शन में साधना करता है, तो एक-एक करके ये सभी गुण और दुर्गुण उससे बाहर निकल आते हैं। वह जान जाता है… वह शरीर नहीं है… वह आत्मा है…
और फिर उसके अंतर्मन में होता है प्रभु का साक्षात्कार।
संत की आंखें बंद, हल्की मुस्कान, प्रकाश से उनका चेहरा दमकता है]
(भावुक होकर)
तभी तो कहा गया है —
"गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय…"
बेटी ने बाप का कर्जा ऐसे उतारा अपनी बुद्धिमता से
एक छोटे व्यापारी का व्यापार डूब रहा था और उसने साहूकार से भारी रकम उधार ली थी। साहूकार, एक बूढ़ा, बदसूरत और कुटिल व्यक्ति था, जिसकी निगाह व्...
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