Monday, July 28, 2025

बेटी ने बाप का कर्जा ऐसे उतारा अपनी बुद्धिमता से


एक छोटे व्यापारी का व्यापार डूब रहा था और उसने साहूकार से भारी रकम उधार ली थी। साहूकार, एक बूढ़ा, बदसूरत और कुटिल व्यक्ति था, जिसकी निगाह व्यापारी की खूबसूरत और जवान बेटी पर थी। कर्ज चुकाने की अंतिम तिथि आ गई, और व्यापारी बेबस था।
"एक ही रास्ता है, व्यापारी," साहूकार ने अपनी पतली मुस्कान फैलाते हुए कहा। "तुम्हारी बेटी का विवाह मुझसे हो जाए, तो मैं तुम्हारा सारा कर्ज, ब्याज सहित, भूल जाऊंगा। वरना, तुम जेल में सड़ोगे।"
व्यापारी और उसकी बेटी, राधिका, इस अमानवीय सौदे से अंदर तक हिल गए। राधिका के पिता कांप रहे थे, और उसकी आँखों में अपमान और लाचारी साफ दिख रही थी। राधिका का दिल दर्द से फट रहा था, लेकिन वह जानती थी कि उसे अपने पिता को बचाना है।
साहूकार, अपनी धूर्तता में चूर, बोला, "मैं एक थैली में एक सफेद और एक काला कंकड़ रखूंगा। तुम्हारी बेटी बिना देखे थैली से एक कंकड़ निकालेगी। अगर उसने काला कंकड़ निकाला, तो उसे मुझसे विवाह करना होगा और तुम्हारा सारा कर्ज माफ हो जाएगा। अगर उसने सफेद कंकड़ निकाला, तो उसे मुझसे शादी नहीं करनी पड़ेगी और तुम्हारा कर्ज भी माफ कर दिया जाएगा। लेकिन अगर तुम्हारी बेटी थैली से कंकड़ निकालने से इंकार करेगी, तो मैं तुम्हें जेल भिजवा दूंगा।"
वे तीनों व्यापारी के बगीचे के रास्ते पर खड़े थे, जहाँ सफेद और काली बजरी बिछी हुई थी। साहूकार ने नाटक करते हुए झुककर उस बजरी में से दो कंकड़ उठाए और अपने हाथ में पकड़ी हुई खाली थैली में डाल दिए। राधिका की तीखी नजरों ने पलक झपकते ही देख लिया कि, बेईमान साहूकार ने बजरी में से दोनों कंकड़ काले रंग के ही उठाए थे! उसका दिल जोर से धड़कने लगा। यह एक दुःस्वप्न था।
साहूकार ने मुस्कुराते हुए राधिका की ओर थैली बढ़ाई। "लो, बेटी, अपनी किस्मत का फैसला करो।"
राधिका के दिमाग में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा। उसके पास तीन ही विकल्प थे:
 * कंकड़ निकालने से इनकार करना: इससे उसके पिता सीधे जेल चले जाते।
 * साहूकार की बेईमानी उजागर करना: लेकिन साहूकार आसानी से नहीं मानता। वह इनकार कर देता, और कोई उसे गलत साबित नहीं कर पाता, क्योंकि सबूत तो उसकी थैली में थे। इससे केवल स्थिति और बिगड़ती।
 * एक काला कंकड़ निकालकर अपनी जिंदगी कुर्बान करना: यह सबसे आसान, पर सबसे दर्दनाक रास्ता था। अपने पिता को बचाने के लिए उसे एक ऐसे व्यक्ति से शादी करनी पड़ती, जिससे वह घृणा करती थी।
राधिका ने गहरी साँस ली। उसकी आँखें क्षण भर के लिए बंद हुईं, फिर दृढ़ता से खुलीं। उसने अपनी पूरी शक्ति और बुद्धिमत्ता को एक जगह केंद्रित किया। यह सिर्फ कंकड़ों का खेल नहीं था, यह जीवन और मृत्यु का सवाल था। उसके चेहरे पर अचानक एक शांत, दृढ़ भाव आया।
उसने धीरे से थैली में हाथ डाला, जैसे कि उसे जरा भी अंदाजा न हो। साहूकार की आँखें चमक रही थीं। राधिका ने एक कंकड़ उठाया, और बिना देखे, बड़ी चतुराई से, उसे नीचे पड़ी हुई बजरी में फेंक दिया!
साहूकार और उसके पिता दोनों भौंचक्के रह गए।
राधिका ने अपनी हथेलियाँ मिलाईं, जैसे कि गलती हो गई हो। "ओह, सॉरी! मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ, बिना देखे ही कंकड़ फेंक दिया। चलो कोई बात नहीं, अभी एक कंकड़ तो थैली में है ना। उसे देखकर आप बता सकते हैं कि, मैंने किस रंग का कंकड़ थैली से निकाला था। अगर उसमें काला कंकड़ शेष है, तो इसका मतलब मैंने सफेद कंकड़ थैली में से निकाला था, है ना?"
साहूकार का चेहरा पल भर में सफेद पड़ गया। वह अपनी बेईमानी के कारण जानता था कि थैली में तो काला कंकड़ ही बचा है। अगर वह कहेगा कि थैली में काला कंकड़ है, तो इसका मतलब राधिका ने सफेद कंकड़ निकाला था, और उसे अपना वादा निभाना होगा। अगर वह कहेगा कि थैली में सफेद कंकड़ है, तो उसकी बेईमानी सबके सामने आ जाएगी, और उसका पर्दाफाश हो जाएगा। वह फंस गया था।
साहूकार के पास कोई विकल्प नहीं था। उसे अपनी बेईमानी को छुपाने के लिए यह कबूल करना पड़ा कि राधिका ने "सफेद" कंकड़ निकाला था। उसका चेहरा उतर गया। उसकी चाल उसी पर भारी पड़ गई थी। राधिका ने अपनी अविश्वसनीय बुद्धि और तेज दिमाग से एक असंभव सी, विपरीत परिस्थिति को अपने हक में बदल डाला था।
व्यापारी और राधिका खुशी से फूले नहीं समाए। कर्ज माफ हो गया, और राधिका को साहूकार से शादी नहीं करनी पड़ी। साहूकार अपनी हार से शर्मिंदा होकर वहाँ से चला गया। राधिका की बुद्धिमत्ता ने न केवल उसके पिता को बचाया, बल्कि एक कुटिल व्यक्ति को उसी के जाल में फंसा दिया। उस दिन के बाद, राधिका की बहादुरी और समझदारी की कहानी दूर-दूर तक फैल गई, जो यह साबित करती थी कि बुद्धि और साहस किसी भी मुश्किल से उबरने की कुंजी हैं।
 
 * प्रतीकात्मकता का उपयोग: जैसे कि सफेद कंकड़ आशा और स्वतंत्रता का प्रतीक है, जबकि काला कंकड़ दासता और निराशा का।

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